गुरुवार, 15 फ़रवरी 2018

गृहस्थ जीवन


वो नदिया के दो किनारों से ।
 बीच सँग बहती धारों से ।

 छूते लहरें धाराओं की ,
 कुछ खट्टे मीठे वादों से ।
  
 प्रणय मिलन की यादों सँग,
 घटती बढ़तीं धाराओं से  ।

 सप्तपदी जीवन नदियाँ में,
  टकराते मिश्रित धाराओं से ।

 सहज रहे हैं समेट रहे हैं ,
 अपनी स्नेहिल बाहों से ।

 भींग रहे हैं पल हर पल ,
 लिपटे चिपटे आभासों से ।

 वो नदिया के दो किनारों से।

 ..... विवेक दुबे"निश्चल"@...

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