यहाँ साजिशों के मौसम है ।
यहाँ रंजिशों के मौसम है ।
यहाँ नफरतों की बारिशों में ,
शैतानियत के मौसम है ।
यहाँ पतझड़ है शराफ़त की,
बीते भाई चारे के मौसम है ।
नही है अब यहाँ चैन-ओ-अमन ,
यहाँ शख़्स को शख़्स से चुभन है ।
यहाँ आँधियाँ हैं नफरतों की,
उड़ता गुबार-ओ-सितम है ।
इंसान-ए-ईमान हुआ अब ख़त्म है।
यहाँ साजिशों के मौसम है ।
क्या यही मेरा अहल-ए-वतन है ।
......विवेक दुबे "निश्चल"@........
यहाँ रंजिशों के मौसम है ।
यहाँ नफरतों की बारिशों में ,
शैतानियत के मौसम है ।
यहाँ पतझड़ है शराफ़त की,
बीते भाई चारे के मौसम है ।
नही है अब यहाँ चैन-ओ-अमन ,
यहाँ शख़्स को शख़्स से चुभन है ।
यहाँ आँधियाँ हैं नफरतों की,
उड़ता गुबार-ओ-सितम है ।
इंसान-ए-ईमान हुआ अब ख़त्म है।
यहाँ साजिशों के मौसम है ।
क्या यही मेरा अहल-ए-वतन है ।
......विवेक दुबे "निश्चल"@........
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