शनिवार, 17 फ़रवरी 2018

यहाँ साज़िशों के मौसम हैं

 यहाँ साजिशों के मौसम है ।
 यहाँ रंजिशों के मौसम है ।
 यहाँ नफरतों की बारिशों में ,
 शैतानियत के मौसम है ।
 यहाँ पतझड़ है शराफ़त की, 
 बीते भाई चारे के मौसम है ।
 नही है अब यहाँ चैन-ओ-अमन ,
 यहाँ शख़्स को शख़्स से चुभन है  ।
 यहाँ आँधियाँ हैं नफरतों की, 
  उड़ता गुबार-ओ-सितम है ।
  इंसान-ए-ईमान हुआ अब ख़त्म है।
   यहाँ साजिशों के मौसम है ।
 क्या यही मेरा अहल-ए-वतन है ।
        ......विवेक दुबे "निश्चल"@........

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