तुम कद्र करों पहले अपनों की ।
फिर फ़िक्र करो न सपनों की ।
चलतीं हैं हर दम संग छायाँ बन ,
मिलती हैं जो दुआएँ अपनों की ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"© .....
फिर फ़िक्र करो न सपनों की ।
चलतीं हैं हर दम संग छायाँ बन ,
मिलती हैं जो दुआएँ अपनों की ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"© .....
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें