भक्ति के नौ प्रकार,
कहें शास्त्र स-उपकार।
श्रवण,कीर्तन,स्मरण,
पाद सेवन,वंदन,
दस्य,सख्य,आत्मनिवेदन।
सब *नवधा भक्ति* प्रकार ।
1 श्रवण कर श्रद्धा सहित,
अतृप्त निरन्तर मन भाव।
2
कीर्तन कर मन मग्न भाव से,
कर हरि लीला का गुण गान ।
3
स्मरण कर हर पल प्रभु का,
कर उसकी शक्ति महात्म्य विचार।
4
आश्रय ले प्रभु चरणों मे,
पाद सेवन सर्वस्य मान।
5
अर्चन कर मन वचन कर्म से,
पवित्र भाव से प्रभु चरण पखार।
6
वंदन सदा कर तू परमेश्वर का,
कण कण प्रभु छवि निहार ।
7
दास्य रहो सदा परमेश्वर के ,
कृतार्थ भाव से मानो उपकार।
8
साख्य भाव से साझा समझ के,
पाप पुण्य समर्पित निवेदित हो पुकार।
9
आत्मनिवेदित मन से प्रभु चरणों मे,
मिल परम् सत्ता से कर एकाकार।
पा जाएगा तब तू हरि दर्शन,
जन्म हुआ सार्थक साकार ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"©......
कहें शास्त्र स-उपकार।
श्रवण,कीर्तन,स्मरण,
पाद सेवन,वंदन,
दस्य,सख्य,आत्मनिवेदन।
सब *नवधा भक्ति* प्रकार ।
1 श्रवण कर श्रद्धा सहित,
अतृप्त निरन्तर मन भाव।
2
कीर्तन कर मन मग्न भाव से,
कर हरि लीला का गुण गान ।
3
स्मरण कर हर पल प्रभु का,
कर उसकी शक्ति महात्म्य विचार।
4
आश्रय ले प्रभु चरणों मे,
पाद सेवन सर्वस्य मान।
5
अर्चन कर मन वचन कर्म से,
पवित्र भाव से प्रभु चरण पखार।
6
वंदन सदा कर तू परमेश्वर का,
कण कण प्रभु छवि निहार ।
7
दास्य रहो सदा परमेश्वर के ,
कृतार्थ भाव से मानो उपकार।
8
साख्य भाव से साझा समझ के,
पाप पुण्य समर्पित निवेदित हो पुकार।
9
आत्मनिवेदित मन से प्रभु चरणों मे,
मिल परम् सत्ता से कर एकाकार।
पा जाएगा तब तू हरि दर्शन,
जन्म हुआ सार्थक साकार ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"©......
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें