आज हम ही हम हैं ।
साथ बेरुखी के कदम हैं ।
ख़यालों के बहते दरिया को ,
समंदर से मिलने का गम है ।
टकराता था साहिल से जो ,
आज वो तूफ़ां क्यों नम है ।
बिखेरकर अपने आप को ,
खाता सहजने की कसम हैं।
आज हम ही हम हैं ।
.... विवेक दुबे "निश्चल"@....
Blog post 16/2/18
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