कुछ शब्द छूटते ,
कुछ शब्द टूटते ।
फिर भी हम ,
शब्द कूटते ।
शब्दों में कुछ ,
रिश्ते ढूंढते ।
भावों से नाते ,
शब्द सींचते ।
बस शब्दों से ,
शब्द खींचते ।
अपनेपन के ,
बीज़ सींचते ।
अंकुरित हो कोई बीज,
बन वृक्ष विशाल ।
कर जाये कमाल ,
हुए हम मालामाल।
वृक्ष पर मीठे ,
फल आयें जब।
पंक्षी डाल डाल ,
नीड़ बनाये तब।
हुए शब्द सार्थक तब।
....विवेक दुबे"निश्चल"@...
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