मंगलवार, 13 फ़रवरी 2018

जागती आँखों से ख़्वाब देखता हूँ

जागती आँखों से ख़्वाब देखता हूँ ।
ऐ चाँद मैं तुझे बे-हिसाब देखता हूँ ।
 उतरता नही तू क्यों जमीं पर कभी,
तुझे निग़ाह-ऐ-आस-पास देखता हूँ ।
... विवेक दुबे"निश्चल"©...

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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