559
हर दिन गुजर जाता रहा ।
कुछ कहकर जाता रहा।
कुछ पा जाने की आशा में ,
कुछ शेष बिखर जाता रहा ।
...
560
नज़र रहा कुछ बे-नजर आता रहा ।
हर्फ़ अल्फ़ाज़ क्युं बे-खबर जाता रहा ।
रहा खंजर वक़्त हालात के हाथों में ,
एक ज़ख्म दिल ये ज़िगर पाता रहा ।
...
561
नेकनीयत चल चलता रहा ।
हालातो में ढल ढलता रहा ।
बदल जाएंगे एक दिन ये ,
नाकामी का पल पलता रहा ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 3
हर दिन गुजर जाता रहा ।
कुछ कहकर जाता रहा।
कुछ पा जाने की आशा में ,
कुछ शेष बिखर जाता रहा ।
...
560
नज़र रहा कुछ बे-नजर आता रहा ।
हर्फ़ अल्फ़ाज़ क्युं बे-खबर जाता रहा ।
रहा खंजर वक़्त हालात के हाथों में ,
एक ज़ख्म दिल ये ज़िगर पाता रहा ।
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561
नेकनीयत चल चलता रहा ।
हालातो में ढल ढलता रहा ।
बदल जाएंगे एक दिन ये ,
नाकामी का पल पलता रहा ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 3
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