पढ़ते रहे सब खमोशी से ,
महफ़िल सजी बहारों की ।
रोशन शमा महफ़िल में ,
मुंतज़िर रही बहारों की ।
तल्ख़ रहे दिन ठंडे ठंडे ,
गर्म रही रात इशारों की ।
बैठे रहे बस यूँ ही तन्हा ,
छूती रही लहर किनारों की ।
उतर रहे माँझी लहरों में ,
कश्ती साथ रही सहारों की ।
चलते रहे स्याह अंधेरों में ,
आस रही रोशन मीनारों की ।
ख़ामोश रहे सब खामोशी से ,
तासीर रही ये"निश्चल"यारों की ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 6(6)
महफ़िल सजी बहारों की ।
रोशन शमा महफ़िल में ,
मुंतज़िर रही बहारों की ।
तल्ख़ रहे दिन ठंडे ठंडे ,
गर्म रही रात इशारों की ।
बैठे रहे बस यूँ ही तन्हा ,
छूती रही लहर किनारों की ।
उतर रहे माँझी लहरों में ,
कश्ती साथ रही सहारों की ।
चलते रहे स्याह अंधेरों में ,
आस रही रोशन मीनारों की ।
ख़ामोश रहे सब खामोशी से ,
तासीर रही ये"निश्चल"यारों की ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 6(6)
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