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एक आइना ही अपना निकला ।
हर सच्चा तो सपना निकला ।
उठाता रहा कसम उसूलों की ,
उसूलों पर जितना निकला ।
सजा नही कहीं श्रृंगारों में ,
मुफ़्त ही बिकना निकला ।
लाया न हाल जुबां कभी कोई ,
किस्सा मुफ़्लिशि उतना निकला ।
डूबता रहा रिवायत दुनियाँ में ,
"निश्चल" नादां इतना निकला ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 6(16)
एक आइना ही अपना निकला ।
हर सच्चा तो सपना निकला ।
उठाता रहा कसम उसूलों की ,
उसूलों पर जितना निकला ।
सजा नही कहीं श्रृंगारों में ,
मुफ़्त ही बिकना निकला ।
लाया न हाल जुबां कभी कोई ,
किस्सा मुफ़्लिशि उतना निकला ।
डूबता रहा रिवायत दुनियाँ में ,
"निश्चल" नादां इतना निकला ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 6(16)
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