शनिवार, 17 नवंबर 2018

रीते रीते से सब बर्तन ।


रीते  रीते से सब बर्तन ।
उधड़ रही बाहों से अचकन ।

भूल गया सब तरुणाई सँग ,
झूँठा सा वादों का बचपन ।

मदहोश हुआ योवन पाकर ,
मन करता मन से अनबन ।

नेह बसा था जिन नयनों में ,
बदल गई अब वो चितवन ।

अहम हुआ मन को तन का ,
चलता गर्भित ले तन मन ।

भूल चला उसको अहम तले,
हर लेता जो तन से ज़ीवन ।

रीते रीते से सब बर्तन ।
उधड़ रही बाहों से अचकन ।

.... विवेक दुबे"निश्चल@..
डायरी 5(174)
Blog post 17/11/18

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