रीते रीते से सब बर्तन ।
उधड़ रही बाहों से अचकन ।
भूल गया सब तरुणाई सँग ,
झूँठा सा वादों का बचपन ।
मदहोश हुआ योवन पाकर ,
मन करता मन से अनबन ।
नेह बसा था जिन नयनों में ,
बदल गई अब वो चितवन ।
अहम हुआ मन को तन का ,
चलता गर्भित ले तन मन ।
भूल चला उसको अहम तले,
हर लेता जो तन से ज़ीवन ।
रीते रीते से सब बर्तन ।
उधड़ रही बाहों से अचकन ।
.... विवेक दुबे"निश्चल@..
डायरी 5(174)
Blog post 17/11/18
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