शनिवार, 17 नवंबर 2018

रिक्त व्योम छूने की आशा में ।

रिक्त व्योम छूने की आशा में ।
कुंठित मन अभिलाषा में ।

तप्त धरा पथ पग रख कर ।
चलता शापित पथ पर ।

लक्ष्यहीन सी दृष्टि विखरी ।
दूर क्षितिज छितरी छितरी ।

दीप्त नहीं आभा कोई आवर्तन को ।
तम गर्भ तले अवशोषित दृष्टि पसरी ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 5(176)

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