रिक्त व्योम छूने की आशा में ।
कुंठित मन अभिलाषा में ।
तप्त धरा पथ पग रख कर ।
चलता शापित पथ पर ।
लक्ष्यहीन सी दृष्टि विखरी ।
दूर क्षितिज छितरी छितरी ।
दीप्त नहीं आभा कोई आवर्तन को ।
तम गर्भ तले अवशोषित दृष्टि पसरी ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 5(176)
कुंठित मन अभिलाषा में ।
तप्त धरा पथ पग रख कर ।
चलता शापित पथ पर ।
लक्ष्यहीन सी दृष्टि विखरी ।
दूर क्षितिज छितरी छितरी ।
दीप्त नहीं आभा कोई आवर्तन को ।
तम गर्भ तले अवशोषित दृष्टि पसरी ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 5(176)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें