मंगलवार, 13 नवंबर 2018

चल आज

चल आज किनारा करते हैं ।
नजर अश्क़ सहारा करते है ।
 तोड़कर रिश्ते पुराने सारे ,
 हम इश्क़ दुवारा करते हैं ।
...
हसरत नही इरादा करते हैं ।
एक अधूरा वादा करते हैं ।
उकेरकर लफ्ज़ कलम तले ,
 जज्बात-ए-बहारा करते है ।
....
एक हसरत रही इरादों में ।
 छूटता रहा कुछ वादों में ।
उकेरकर लफ्ज़ कलम तले,
हम बैठे जज्बा-ए-बहारों में ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 5(167)

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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