क्रम जन्म जन्म चलता रहा ।
जीवन से जीवन मिलता रहा ।
एक आकार निराकार सा ,
स-आकार बदलता रहा ।
वसुधा पोषित सम भाव सभी ,
कण कण शृष्टि से पलता रहा ।
क्रम नियत यही नियंता का ,
रजः रजः में घुल मिलता रहा ।
घटना बदलती रही दृष्टि टलती रही ।
शृष्टि अपने ही क्रम से चलती रही ।
न आई वो घड़ी लौटकर फिर कभी ,
नियति हर पल करवट बदलती रही ।
लेती रही अद्भुत रूप हर पल शृष्टि ,
अनुपल विपल पल घड़ी चलती रही ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी6(10)
जीवन से जीवन मिलता रहा ।
एक आकार निराकार सा ,
स-आकार बदलता रहा ।
वसुधा पोषित सम भाव सभी ,
कण कण शृष्टि से पलता रहा ।
क्रम नियत यही नियंता का ,
रजः रजः में घुल मिलता रहा ।
घटना बदलती रही दृष्टि टलती रही ।
शृष्टि अपने ही क्रम से चलती रही ।
न आई वो घड़ी लौटकर फिर कभी ,
नियति हर पल करवट बदलती रही ।
लेती रही अद्भुत रूप हर पल शृष्टि ,
अनुपल विपल पल घड़ी चलती रही ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी6(10)
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