क्या खूब दीवानगी है ।
ज़िस्म की रवानगी है ।
खो जाते नैना चँचल ,
मन की यही बानगी है ।
....
छलकते रहे पैमाने ,
मयखानों की खातिर ।
होते रहे दीवाने ,
बेगानों की खातिर ।
सुनाकर नज़्म ,
आज महफ़िल में ,
ख़ामोश हुए ,
अरमानों की ख़ातिर ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 5(177)
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