बुधवार, 14 नवंबर 2018

मुक्तक 562/563

562
सपना दिखाता रहे , जीना सीखाता रहे ।
हँसता रहे हर दम , गम पीता पिता रहे ।
लड़ता रहे हालत से,हसरतों की ख़ातिर, खुशहाल रहे हर हाल , जीता पिता रहे ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@....
563
वो ही सच है जो सामने है निग़ाह के ।
ये वादे तो झूंठे है सब इस संसार के ।
बिता लें कुछ पल अपनो की खातिर ,
कल गुजर जाएंगे ये दिन बाहर के ।
....विवेक दुबे "निश्चल"@..

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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