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शिल्प चार सगण 16 वर्ण
सम तुकांतक
सब दे कर ले चलता कुछ वो ।
निकला मन के पथ पे अब वो ।
मन रीत रहा मन दे चल के ।
ठहरा सबसे मिलता चल के ।
रुक राह कभी ठहरा पल को ।
रख साथ लिया अगले पल को ।
तब रीत गया गुजरे पल से ।
मिलने चलता अगले पल से ।
भरता जल भीतर था घट के ।
घट वो अब रीत रहा भर के ।
लहरा उठता लहरें बन के ।
ठहरा जलधी तट से मिल के ।
कब राग पले अब याद नहीं ।
सब छोड़ चला सबसे मिल के ।
अब जीत नहीं अब हार नहीं ।
चलता अब वो "निश्चल" बन के ।
लहरा चलती लहरें बन के ।
बहती तटनी तट से मिल के ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 5(172)
शिल्प चार सगण 16 वर्ण
सम तुकांतक
सब दे कर ले चलता कुछ वो ।
निकला मन के पथ पे अब वो ।
मन रीत रहा मन दे चल के ।
ठहरा सबसे मिलता चल के ।
रुक राह कभी ठहरा पल को ।
रख साथ लिया अगले पल को ।
तब रीत गया गुजरे पल से ।
मिलने चलता अगले पल से ।
भरता जल भीतर था घट के ।
घट वो अब रीत रहा भर के ।
लहरा उठता लहरें बन के ।
ठहरा जलधी तट से मिल के ।
कब राग पले अब याद नहीं ।
सब छोड़ चला सबसे मिल के ।
अब जीत नहीं अब हार नहीं ।
चलता अब वो "निश्चल" बन के ।
लहरा चलती लहरें बन के ।
बहती तटनी तट से मिल के ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 5(172)
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