शुक्रवार, 16 नवंबर 2018

मिटते शब्द

मिटते शब्द ,
सूखती स्याही ।

सिमटती अभिलाषाएं ,
अहसासों की रुसवाई ।

उखड़े से कुछ पन्नों पर ,
शेष रहीं कुछ परछाई ।

 दूर रहे शब्दों से अर्थ ,
 अर्थों ने शब्दों की ,
 कब प्यास बुझाई ।

 "निश्चल"निकट रहा कोई ,
  निग़ाह पास नहीं आई ।

... विवेक दुबे"निश्चल""@...
डायरी 6(2)

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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