यह नसीब भी आदत बदलता रहा ।
बदल बदल कर साथ चलता रहा ।
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मुक़ाम की तलाश को तलाशता रहा ।
वो हर दम हारते से हालात सा रहा ।
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अपने आप से यूँ भी सौदा रहा।
ज़िन्दगी का यूँ भी मसौदा रहा।
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अपने ही आप को ढालता रहा ।
ज़ज्ब जज्बात को पालता रहा ।
सच में झूठ का साथ देता राह ।
कुछ यूँ सच का साथ देता रहा ।
विवेक दुबे"निश्चल"@.
डायरी 5(178)
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