छोड़ चला वो धीरे धीरे ,
दुष्कर सी उन राहों को ।
मदहोशी के आलम में ,
बहकाती फ़िज़ाओं को ।
छोड रहा बूंद बूंद सा ,
परिपोषित विचारो को ।
आ बैठा हृदय कुंज तले ,
ले अपने सुरभित सहारों को ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 5(175)
दुष्कर सी उन राहों को ।
मदहोशी के आलम में ,
बहकाती फ़िज़ाओं को ।
छोड रहा बूंद बूंद सा ,
परिपोषित विचारो को ।
आ बैठा हृदय कुंज तले ,
ले अपने सुरभित सहारों को ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 5(175)
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