शुक्रवार, 16 नवंबर 2018

सफ़र होता रहा यूँ ही,

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1222   1222    1222  1222

सफ़र होता रहा यूँ ही,
           असर नही पूरा कोई  ।

डगर खोता रहा यूँ ही,
          नजर धोका मिला कोई।

जुल्म है ये नए यूँ ही ,
           ज़ख्म हरा बोला कोई ।

 सख़्त था वो नही यूँ ही ,             
         जली शमा मोम से कोई ।

पिघलता ही रहा यूँ ही ,
         हुआ रोशन कहीं कोई ।

चलता रहा साथ हालात यूँ ही ,
         वो "निश्चल" रहा चलता रहा कोई ।
             
.....विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 6(17)

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