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1222 1222 1222 1222
सफ़र होता रहा यूँ ही,
असर नही पूरा कोई ।
डगर खोता रहा यूँ ही,
नजर धोका मिला कोई।
जुल्म है ये नए यूँ ही ,
ज़ख्म हरा बोला कोई ।
सख़्त था वो नही यूँ ही ,
जली शमा मोम से कोई ।
पिघलता ही रहा यूँ ही ,
हुआ रोशन कहीं कोई ।
चलता रहा साथ हालात यूँ ही ,
वो "निश्चल" रहा चलता रहा कोई ।
.....विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 6(17)
1222 1222 1222 1222
सफ़र होता रहा यूँ ही,
असर नही पूरा कोई ।
डगर खोता रहा यूँ ही,
नजर धोका मिला कोई।
जुल्म है ये नए यूँ ही ,
ज़ख्म हरा बोला कोई ।
सख़्त था वो नही यूँ ही ,
जली शमा मोम से कोई ।
पिघलता ही रहा यूँ ही ,
हुआ रोशन कहीं कोई ।
चलता रहा साथ हालात यूँ ही ,
वो "निश्चल" रहा चलता रहा कोई ।
.....विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 6(17)
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