मंगलवार, 13 नवंबर 2018

दौड़ रहे हैं अश्व मन

दौड़ रहे हैं अश्व मन आशाओं के ।
हाथ लिए ध्वज अभिलाषाओं के ।

उड़ती रजः इच्छाओं की टापों से ।
धूमिल नभ पथ पडता पद चापों से ।

राह जटिल है लक्ष्य कठिन है ।
जूझ रहा है मन झंझावातों से ।

काट रहा उलझी राह लता बेल को ,
वो अश्व आरोही आपने ही हाथों से ।

खोज रहा एक लक्ष्य नया फिर ,
खोकर नव जीवन की चाहों में ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 5(168)

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