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एक तस्बीर उतारी अल्फ़ाज़ की ।
रही गुजारिश जुबां आवाज की ।
खनके नहीं तार सुरों के मचलकर ,
एक ख़ामोश शरारत रही साज की ।
देखता ही रहा असमां हसरत से ,
नियत रही परिंदा पँख परवाज़ की ।
गुजरता रहा वो चाँद आसमान से ,
गुजरती रही और रात आज की ।
न बंध सकी सुरों में यह जिंदगी ,
कसक रही "निश्चल" रियाज़ की ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 6(15)
एक तस्बीर उतारी अल्फ़ाज़ की ।
रही गुजारिश जुबां आवाज की ।
खनके नहीं तार सुरों के मचलकर ,
एक ख़ामोश शरारत रही साज की ।
देखता ही रहा असमां हसरत से ,
नियत रही परिंदा पँख परवाज़ की ।
गुजरता रहा वो चाँद आसमान से ,
गुजरती रही और रात आज की ।
न बंध सकी सुरों में यह जिंदगी ,
कसक रही "निश्चल" रियाज़ की ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 6(15)
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