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निखर चला चल , मन भीतर से ।
श्रृंगारित छण बन , मन भीतर से ।
आत्म भाव गुन , मन भीतर से ।
अवचेतन धुन सुन, मन भीतर से ।
बैर रहे न , राग द्वेष रहे कोई ,
"निश्चल" बन जा , मन भीतर से ।
ज्योत जलेगी तब , अन्तर्मन में ,
प्रगट हरि जब , मन भीतर से ।
न मचल लहरों पे ।
डूब जा किनारों पे ।
कर यक़ीन इतना ,
डूबने के इरादों पे ।
मिल जाएगी मंजिल ,
छोड़ते ही सहारों के ।
है निग़ाह तू हरदम ,
है उसके दुलारों में ।
तू आँख तो मिला ,
बस उसके नजारों से ।
.. विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 6(13)
निखर चला चल , मन भीतर से ।
श्रृंगारित छण बन , मन भीतर से ।
आत्म भाव गुन , मन भीतर से ।
अवचेतन धुन सुन, मन भीतर से ।
बैर रहे न , राग द्वेष रहे कोई ,
"निश्चल" बन जा , मन भीतर से ।
ज्योत जलेगी तब , अन्तर्मन में ,
प्रगट हरि जब , मन भीतर से ।
न मचल लहरों पे ।
डूब जा किनारों पे ।
कर यक़ीन इतना ,
डूबने के इरादों पे ।
मिल जाएगी मंजिल ,
छोड़ते ही सहारों के ।
है निग़ाह तू हरदम ,
है उसके दुलारों में ।
तू आँख तो मिला ,
बस उसके नजारों से ।
.. विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 6(13)
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