शुक्रवार, 16 नवंबर 2018

मुक्तक 568

तेरी सोच की सोच को क्या कहूँ ।
उस निर्दोष के दोष को क्या कहूँ ।
करता रहा गुनाह सवाब की तरह ,
तुझ मदहोश के होश को क्या कहूँ ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@..

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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