मंगलवार, 13 नवंबर 2018

रूठती जवानी,569

रूठती जवानी,
      आब जिंदगानी बहाने आए।

प्यास दरिया की, 
      समंदर से बुझाने आए ।

 टुकड़े टुकड़े तोड़ते, 
       तरासने की चाह में ,

 हर तरास से बुत की ,
        कहानी सुनाने आए ।

उठाकर हाथ , 
         ख़ाक हसरतों की ,

आग ज़ज्बात की ,
        बुझाने आए ।

 तरसती निग़ाहों पे, 
          ये इल्ज़ाम आए ।

  इस तरह हम , 
        ज़माने के काम आए ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 5(169)

कोई टिप्पणी नहीं:

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...