रूठती जवानी,
आब जिंदगानी बहाने आए।
प्यास दरिया की,
समंदर से बुझाने आए ।
टुकड़े टुकड़े तोड़ते,
तरासने की चाह में ,
हर तरास से बुत की ,
कहानी सुनाने आए ।
उठाकर हाथ ,
ख़ाक हसरतों की ,
आग ज़ज्बात की ,
बुझाने आए ।
तरसती निग़ाहों पे,
ये इल्ज़ाम आए ।
इस तरह हम ,
ज़माने के काम आए ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 5(169)
आब जिंदगानी बहाने आए।
प्यास दरिया की,
समंदर से बुझाने आए ।
टुकड़े टुकड़े तोड़ते,
तरासने की चाह में ,
हर तरास से बुत की ,
कहानी सुनाने आए ।
उठाकर हाथ ,
ख़ाक हसरतों की ,
आग ज़ज्बात की ,
बुझाने आए ।
तरसती निग़ाहों पे,
ये इल्ज़ाम आए ।
इस तरह हम ,
ज़माने के काम आए ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 5(169)
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