रविवार, 11 फ़रवरी 2018

माँगा नही कुछ मैंने

 ख़ुदा से माँगा नहीं कुछ मैंने ।
बस अपनी बंदगी पेश की है ।
सज़दे में गुनाह कबूल कर ,
रहम के लिए फैलाए हाथ हैं ।
        ....विवेक दुबे"निश्चल"..

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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