शुक्रवार, 23 मार्च 2018

साँझ के आगोश में

साँझ के आगोश में खो गया वो ।
 लो सूरज भी बे-वफ़ा हो गया वो ।
... 
 चले उजाले हर दफ़ा साथ जिसके ,
  अँधेरों से मिलाता फिर भी नैन वो ।
.....
 न रहा छुपकर कभी अँधेरों में जो ,
 अपने ही उजालों से क्यों  बैचेन वो ।
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 निखरा तपकर अपनी तपिश से जो ,
 एक साँझ की ख़ातिर ढलने बैचेन वो ।
....
 दिखाता उजले रास्ते दुनियाँ को जो ,
  एक छाँव से खुदको लगाता ग्रहण वो ।
...
ख़ातिर जिसकी खोता नही चैन जो ।
 ख़ातिर उसकी क्यों इतना बैचेन वो।
.....

 .....विवेक दुबे "निश्चल"@..



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