नींद नही आती अब ,
पलकों पे रात बिताने को ।
रोतीं रातें क्यों अब ,
शबनम के अहसासों को ।
भूल गई क्यों अब,
अलसाए इन भुनासारों को ।
खोज रहा अंबर अब ,
तिमिर सँग चलते तारों को ।
नींद नही आती अब,
पलकों पे रात बिताने को ।
भूल रहे क्यों अब,
अपने ही अपने वादों को ।
रुके कदम क्यों अब,
पाते ही मुश्किल राहों को ।
एक अकेला चल न पाएगा ,
बीच राह में थक जाएगा ।
कैसे अपनी मंजिल पाएगा ।
आजा तू साथ बिताने को ।
नींद नही आती अब ,
पलकों पे रात बिताने को ।
छोड़ राह मुड़, तू जाना ।
आधी राह चले , तू आना ।
कुछ दूर चले भले कोई ,
जा फिर , वापस आने को ।
राहों से बे-ख़बर नही मैं ,
एकाकी इस ज़ीवन में ,
साथ चले बस मेरे कोई ।
मंजिल तो एक बहाने को ।
नींद नही आती अब,
पलकों पे रात बिताने को
.....विवेक दुबे"निश्चल"@....
4/2/18 ,
पलकों पे रात बिताने को ।
रोतीं रातें क्यों अब ,
शबनम के अहसासों को ।
भूल गई क्यों अब,
अलसाए इन भुनासारों को ।
खोज रहा अंबर अब ,
तिमिर सँग चलते तारों को ।
नींद नही आती अब,
पलकों पे रात बिताने को ।
भूल रहे क्यों अब,
अपने ही अपने वादों को ।
रुके कदम क्यों अब,
पाते ही मुश्किल राहों को ।
एक अकेला चल न पाएगा ,
बीच राह में थक जाएगा ।
कैसे अपनी मंजिल पाएगा ।
आजा तू साथ बिताने को ।
नींद नही आती अब ,
पलकों पे रात बिताने को ।
छोड़ राह मुड़, तू जाना ।
आधी राह चले , तू आना ।
कुछ दूर चले भले कोई ,
जा फिर , वापस आने को ।
राहों से बे-ख़बर नही मैं ,
एकाकी इस ज़ीवन में ,
साथ चले बस मेरे कोई ।
मंजिल तो एक बहाने को ।
नींद नही आती अब,
पलकों पे रात बिताने को
.....विवेक दुबे"निश्चल"@....
4/2/18 ,
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