न स्वागत न सत्कार करो ।
अब तो बस प्रतिकार करो ।
बहुत हुआ खेल आँख मिचौली का ,
शत्रु से अब सीधा ही संग्राम करो।
इन कूटनीति के वादों से ,
इन उलझे आधे से वादों से ।
अब तनिक नहीं विश्वास करो ,
शत्रु से अब सीधा ही संग्राम करो ।
कब तक गिनते गिनवाते जाओगे,
एक के बदले दस दस लाओगे ।
नाम रहे न विश्व पटल पर ,
अब ऐसा कोई इंतज़ाम करो ।
पा सम्पूर्ण विजय विश्राम करो ,
शत्रु से अब सीधा ही संग्राम करो।
......विवेक दुबे "निश्चल"@....
अब तो बस प्रतिकार करो ।
बहुत हुआ खेल आँख मिचौली का ,
शत्रु से अब सीधा ही संग्राम करो।
इन कूटनीति के वादों से ,
इन उलझे आधे से वादों से ।
अब तनिक नहीं विश्वास करो ,
शत्रु से अब सीधा ही संग्राम करो ।
कब तक गिनते गिनवाते जाओगे,
एक के बदले दस दस लाओगे ।
नाम रहे न विश्व पटल पर ,
अब ऐसा कोई इंतज़ाम करो ।
पा सम्पूर्ण विजय विश्राम करो ,
शत्रु से अब सीधा ही संग्राम करो।
......विवेक दुबे "निश्चल"@....
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