ज़ज़्बात से जो पूरी ग़जल हो गई ।
एक बात से बात कुछ यूँ हो गई ।
नर्म सेज चुभन अहसास के ।
तेरी यदों में चैन बेचैन हो गई ।
जज़्ब किया तेरी की यदों को ।
तन्हा तन्हा बेचैन रात हो गई।
आता नही चाँद चाँदनी रातों में ।
तर झील सी यह आँख हो गई ।
तपते अहसासों की ठंडक में ,
झोंके लाते गुजरी याद हो गई ।
जाओ साजन अब सहा जाता नही ।
यह बिरह अगन जलाती आग हो गई।
... विवेक दुबे"निश्चल"@.....
Blog post 22/3/18
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें