वो ख़्वाब-ओ-ख़्याल हैं ।
मुझे नही कोई मलाल है ।
जीता हूँ ज़िन्दगी तेरे लिए,
मुझे तेरा ही तो ख़्याल है ।
यहाँ रौशनी की मिसाल है।
यहाँ स्याह भी बे-मिसाल है।
ज़िन्दगी की कशमकश में,
रंज-ओ-ग़म हुए गुलाल हैं।
मुझे चाहतों की खातिर,
चाहतों का न मलाल है।
चलता ख़ामोश राह पर,
मंजिल भी बे-ख़्याल है ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@..
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें