शुक्रवार, 23 मार्च 2018

वो अर्थ हीन

वो अर्थ हीन है , 
 ऐश्वर्य से परे सा ।

        अर्थ हीन होकर भी ,
        अर्थ से भरा सा ।

 रुकता नही जो कभी,
 वो ज़ीवन से भरा सा ।

        ओढ़ता अंबर वो ,
        बिछौना धरा हरा सा ।

 चला जहाँ से वो ,
 आज वहीं खड़ा सा ।

       हार कर भी वो , 
      हालात से लड़ा सा ।

 देखता "निश्चल" मन से ,
 मानव से मानव ठगा सा ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी

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