नैतिकता पढ़ी कभी किताबों में ।
मिलती नही कहीं बाज़ारों में ।
सुनते आए किस्से बड़े सयानों से ,
यह मिलती घर आँगन चौवारों में ।
.
आँगन बँटते अब दीवारों से ।
नाते चलते अब व्यपारों से ।
रिस्तें छूट रहे हैं दीनारों में ,
टूटा नाता अब चौवारों से ।
नैतिकता रही आज किताबो में ।
मिलती नही घर आँगन चौवारों में ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@...
मिलती नही कहीं बाज़ारों में ।
सुनते आए किस्से बड़े सयानों से ,
यह मिलती घर आँगन चौवारों में ।
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आँगन बँटते अब दीवारों से ।
नाते चलते अब व्यपारों से ।
रिस्तें छूट रहे हैं दीनारों में ,
टूटा नाता अब चौवारों से ।
नैतिकता रही आज किताबो में ।
मिलती नही घर आँगन चौवारों में ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@...
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