उम्र के निशां छोड़ती ज़िंदगी।
खूँ में मिठास घोलती ज़िंदगी।
गुजर कर एक कारवां से ,
कारवां नया खोजती ज़िंदगी ।
मैं चलता रहा साथ हालात के ,
वक़्त की राज पूछती ज़िंदगी ।
मैं चल न सका मुताविक सबके ,
कदम कदम मुझे टोकती ज़िंदगी ।
बिखरे क़तरे बे-वफ़ा शबनम के ,
निगाहें मेरी वफ़ा खोजती ज़िंदगी ।
"निश्चल" बिखरा ख़ाक के मानिन्द
मेरे वुजूद में अना खोजती ज़िंदगी।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...
* अना- मैं - अहम
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