उस दर्द को बस माँ सहती है ।
निग़ाह अक्सर चुप रहती है ।
सींच कर लहू से अपने ,
बहाती आँख से मोती है ।
टूटते ख़्वाबों सी अक्सर ,
ख़यालों में जिसे पिरोती है ।
बिखर कर स्याह रातों में ,
शबनम जज़्ब जमीं होती है ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
निग़ाह अक्सर चुप रहती है ।
सींच कर लहू से अपने ,
बहाती आँख से मोती है ।
टूटते ख़्वाबों सी अक्सर ,
ख़यालों में जिसे पिरोती है ।
बिखर कर स्याह रातों में ,
शबनम जज़्ब जमीं होती है ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
कुछ यूँ ताक़ीद किया मुझको ।
कनीज़ से हूर किया मुझको ।
तराश कर अक़्स निगाहों से,
काँच कोहेनूर किया मुझको ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@..
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