सोमवार, 19 मार्च 2018

जिंदगी भी एक

उन तन्हा तन्हा रातों के।
 साथ मख़मली यादों के।
 सम्हलते नही ख़्याल ,
 उठती गिरती साँसों के।

 मेरी इस जिंदगानी की ,
किताब-ए-ज़िल्द पुरानी है ।
 पलट तो सही शफा तू ,
 शफा-दर-शफा कहानी है ।

   सजा कर ख़्वाब जिसके ,
   किताबें लिख डालीं हैं।
   अश्कों की बारिश ने ,
   हर किताब धो डाली है।

  ज़िन्दगी भी एक ,
 किताब-ऐ-कहानी है ।
  बस दो अल्फ़ाज़ की ,
 हिसाब-ऐ-ज़ुवानी है ।
   ... विवेक दुबे "निश्चल"@....

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