घुटन बहुत है ,
खिड़कियाँ खोल दो ।
जज़्बातों को तुम ,
जरा मोल दो ।
गुज़रता हूँ फ़र्ज़ की,
राह से अक़्सर ।
बेवजह न मेरे ,
इरादों को तोल दो ।
रोशन थी शमा,
बुझ गई ख़ुद ही ।
तेरा क़सूर न कोई,
हवा को तुम बोल दो ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@....
खिड़कियाँ खोल दो ।
जज़्बातों को तुम ,
जरा मोल दो ।
गुज़रता हूँ फ़र्ज़ की,
राह से अक़्सर ।
बेवजह न मेरे ,
इरादों को तोल दो ।
रोशन थी शमा,
बुझ गई ख़ुद ही ।
तेरा क़सूर न कोई,
हवा को तुम बोल दो ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@....
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