जैसे ही वो , मुझे मिला ,
वैसे ही मौज , मुझे मिला ।
न अपनो से प्यार अब,
न गैरो से, कोई गिला ।
छोड़ , दुनियाँ के रास्ते ,
रास्ते उसके , मैं चला ।
पाकर , सँग उसका ,
हर सँग , भूलता चला ।
पा जाऊँ मैं भी ,
मंजिल अनन्त की ।
ख़त्म हो जाए ,
यह सिलसिला ।
दुनियाँ से , भागने की , ख़ातिर,
तेरे पीछे , भागता मैं चला ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
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