उम्र चली अब थकने ,
नब्ज़ लगी अब बिकने।
नजरों ने हाट लगाई ,
राह लगी अब तकने ।
मंजिल से पहले ,
साँझ नजर आई ।
कदम लगे अब ,
चलते चलते रुकने ।
सोचूँ अब क्या सोचूँ ,
क्या खोया क्या पाया ।
स्वप्न नही आते अब ,
नींद तले बिकने ।
उठ जाग मुसाफ़िर देर भई,
भोर तले अब पल हैं कितने।
उम्र चली है अब ...
.. विवेक दुबे "निश्चल"@....
नब्ज़ लगी अब बिकने।
नजरों ने हाट लगाई ,
राह लगी अब तकने ।
मंजिल से पहले ,
साँझ नजर आई ।
कदम लगे अब ,
चलते चलते रुकने ।
सोचूँ अब क्या सोचूँ ,
क्या खोया क्या पाया ।
स्वप्न नही आते अब ,
नींद तले बिकने ।
उठ जाग मुसाफ़िर देर भई,
भोर तले अब पल हैं कितने।
उम्र चली है अब ...
.. विवेक दुबे "निश्चल"@....
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें