शिद्दत से पुकारा उसने ।
इल्म सा सराहा उसने ।
गढ़ कर निगाह से मुझे ,
बुत कह पुकारा उसने।
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मैं तेरे इस ज़वाब का , क्या ज़वाब दूँ ।
ज़िंदगी तुझे ज़िंदगी का , क्या हिसाब दूँ ।
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दरिया को चाह थी , छुअन की उनकी ।
बहता गया बस वो , निग़ाह में उनकी ।
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..... विवेक दुबे"निश्चल"@.....
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