शनिवार, 24 मार्च 2018

बुत कह पुकारा उसने


शिद्दत से पुकारा उसने ।
          इल्म सा सराहा उसने ।
 गढ़ कर निगाह से मुझे ,
              बुत कह पुकारा उसने।
 .... 
मैं तेरे इस ज़वाब का , क्या ज़वाब दूँ ।
ज़िंदगी तुझे ज़िंदगी का , क्या हिसाब दूँ ।
.....

दरिया को चाह थी , छुअन की उनकी ।
 बहता गया बस वो , निग़ाह में उनकी ।
...

..... विवेक दुबे"निश्चल"@.....

कोई टिप्पणी नहीं:

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...