ज़िंदगी बस इतनी सी कहानी है ।
सफर में मौत भी एक रवानी है ।
होता रुख़सत मौजों को छोड़कर,
रहती फिर भी मौजों में रवानी है ।
प्यासा रिंद अभी,रूठ जाती साक़ी है।
ज़िंदगी के हाथों से ज़िंदगी जाती है।
मदहोश नही ज़िंदगी साक़ी अभी ।
रिंद-ऐ-ज़िंदगी प्यास अभी बाँकी है।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@.....
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें