यूँ ढेर न लगाओ तुम फूलों के ।
दिल न दुखाओ गुलशन के रसूलों के ।
टूटता है फूल जो हर शाख से ,
जुड़ा था जो अपने ही विश्वास से ।
टूटकर वो एक पल में शाख से ,
दूर हुआ अपने धरा आधार से ।
सहज लाए नज़्र-ओ-अंदाज़ से ,
सजायेंगे ज़ुल्फ़ अपने हाथ से ।
मचलेगा कुछ पल उन जुफों में ।
चमकेगा प्रियतम की नजरों में ।
तोड़ा था जिसने बड़े अंदाज से ।
मसला जाएगा फिर उन्ही हाथ से ।
बिखेरता था जो खुशबू गुलशन में ,
हो गया वो ख़ाक एक मुलाक़ात में ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@.....
Blog post 21/3/18
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