निग़ाह तंग हूँ मगर तंग दिल नही ।
हाँ संग हूँ मैं मगर संग दिल नही ।
मेरी खामोशी , ही भाती रही दुनियाँ को ।
जुवां खोली के जमाना, रुस्वा होता गया।
फूल सा, खिला भी तो था मैं मगर ,
रौंद कर मुझे , कारवां गुजरता गया ।
मंजिलें अक्सर , सामने आती रही मेरे ,
चलते ही रास्ता , कहीं और मुड़ता गया ।
मैं मायूस नही , दुनियाँ के रिवाज़ से ,
मैं रिवाज़ दुनियाँ में , न ढ़लता गया ।
था चेन ज़ख्म को , झूँठ के मरहम से।
मरहम सच, ज़ख्म हरे करता गया ।
मैं चुप हूँ , आज भी यह सोचकर ,
रास्ता मुड़ता गया , सफर कटता गया ।
देखता हूँ दुनियाँ ,दुनियाँ की निगाह से ।
पिघलता है दिल, मोम सा ज़ज्बात से ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
हाँ संग हूँ मैं मगर संग दिल नही ।
मेरी खामोशी , ही भाती रही दुनियाँ को ।
जुवां खोली के जमाना, रुस्वा होता गया।
फूल सा, खिला भी तो था मैं मगर ,
रौंद कर मुझे , कारवां गुजरता गया ।
मंजिलें अक्सर , सामने आती रही मेरे ,
चलते ही रास्ता , कहीं और मुड़ता गया ।
मैं मायूस नही , दुनियाँ के रिवाज़ से ,
मैं रिवाज़ दुनियाँ में , न ढ़लता गया ।
था चेन ज़ख्म को , झूँठ के मरहम से।
मरहम सच, ज़ख्म हरे करता गया ।
मैं चुप हूँ , आज भी यह सोचकर ,
रास्ता मुड़ता गया , सफर कटता गया ।
देखता हूँ दुनियाँ ,दुनियाँ की निगाह से ।
पिघलता है दिल, मोम सा ज़ज्बात से ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
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