उम्र जुड़ रही तारीखों में ।
निशां छोड़ रही रुख़सारों पे ।
दर्ज हुए हिसाब निगाहों में ।
छूटे कुछ गुजरी जीवन रहो में ।
उम्र-ऐ-रौनक रुकने नही देती ।
बकाया कोई रखने नही देतीं ।
कर चल हर हिसाब तरीके से ,
गुजरे यह ज़िंदगी सलीके से ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@.....
Blog post 18/3/18
निशां छोड़ रही रुख़सारों पे ।
दर्ज हुए हिसाब निगाहों में ।
छूटे कुछ गुजरी जीवन रहो में ।
उम्र-ऐ-रौनक रुकने नही देती ।
बकाया कोई रखने नही देतीं ।
कर चल हर हिसाब तरीके से ,
गुजरे यह ज़िंदगी सलीके से ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@.....
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