यूँ शिक़ायत ही रही उसे मुझसे ,
बे-वजह अदावत रही उसे मुझसे ।
यूँ तो संग सा न था मैं कभी ,
संग सी सिफ़त कही मुझसे ।
न था माहिर मैं खेल बिसात का ,
सियासत सी शराफत रही मुझसे ।
जीतकर हारता रहा मैं बार बार ,
न जीतने की कसक रही मुझसे ।
जो बात निग़ाह उतारी थी मैंने ,
"निश्चल" जुवां गई न कही मुझसे ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@...
बे-वजह अदावत रही उसे मुझसे ।
यूँ तो संग सा न था मैं कभी ,
संग सी सिफ़त कही मुझसे ।
न था माहिर मैं खेल बिसात का ,
सियासत सी शराफत रही मुझसे ।
जीतकर हारता रहा मैं बार बार ,
न जीतने की कसक रही मुझसे ।
जो बात निग़ाह उतारी थी मैंने ,
"निश्चल" जुवां गई न कही मुझसे ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@...
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