गुरुवार, 22 मार्च 2018

बहुत कुछ लिख गया मैं

बहुत कुछ लिख गया मैं वक़्त में बहकर ।
 साथ राह यूँ वक़्त , वक़्त पर मेरा होकर ।
रूठते रहे अपने कभी वक़्त की राहों पे ।
 यूँ सहारा दिया अल्फ़ाज़ ने मेरा होकर ।

बहुत कुछ...

 अश्क़ गिरे पन्नो पर , लफ्ज़ बनकर ।
  दर्द निगाहों से , चले ग़जल बनकर ।
  सफ़े-दर-सफ़े सफर रहा कलम का 
  लफ्ज़ लफ्ज़ मेरा   हिसाब बनकर ।

बहुत कुछ...

  ख़्वाब सहेजे कुछ ख़्याल समेटे हुए।
 कुछ सँग उठ खड़े कुछ अधलेटे हुए ।
 थी जमीं हक़ीक़त ख़्वाब के ख़यालों में।
 रही अंगूर की बेटी काँच के प्यालो में ।

बहुत कुछ ...

 ख़ामोश थीं वो खुशियाँ , दर्द बोलते रहे ।
 तूफ़ान के इशारों से ,समन्दर डोलते रहे ।
 मैं होश में रहा, मगर , मदहोश रहकर।
 इश्क़ तेरे अंदाज से,   मैं हैरां होकर ।

बहुत कुछ

          .. विवेक दुबे"निश्चल"©...


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