वो मंजिल नई नही थी।
बस हौंसले की कमी थी ।
थे काँटे बहुत राह में ,
कदम तले चुभन बड़ी थी ।
सफर की मुश्किल घड़ी थी ।
बस एक उलझन बड़ी थी ।
धरता कदम सम्हल कर ,
और मंजिल मिलती नही थी ।
रास्ते थे खुशमुना ,छाँव भी घनी थी ।
पर नियत हर छाँव की भली नही थी ।
है रास्ता बाँकी अभी बहुत ।
मंज़िल अभी मिली नही थी ।
चलता हूँ मैं बस चलता ही हूँ ।
मेरी मंज़िल कोई नई नही थी ।
..... विवेक दुबे "निश्चल"@....
बस हौंसले की कमी थी ।
थे काँटे बहुत राह में ,
कदम तले चुभन बड़ी थी ।
सफर की मुश्किल घड़ी थी ।
बस एक उलझन बड़ी थी ।
धरता कदम सम्हल कर ,
और मंजिल मिलती नही थी ।
रास्ते थे खुशमुना ,छाँव भी घनी थी ।
पर नियत हर छाँव की भली नही थी ।
है रास्ता बाँकी अभी बहुत ।
मंज़िल अभी मिली नही थी ।
चलता हूँ मैं बस चलता ही हूँ ।
मेरी मंज़िल कोई नई नही थी ।
..... विवेक दुबे "निश्चल"@....
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