काटेगा वो क्या फसल प्यार की ।
बीज नफ़रत का जिसने बोया है ।
गैरों की ख़ातिर अक्सर हमने,
अपनो को ही तो खोया है ।
बिलिदानों की बलि बेदी पर ,
बस लाल माँ ने ही खोया है ।
थामे लाठी कौन बने सहारा ,
बूढ़ा बाप सोच सोच रोया है ।
जगता प्रहरी जो रात भर ,
वो भी भोर भए सोया है ।
जो खाता कसमें देश प्रेम की ,
वो तो बस भूखा ही सोया है ।
नाम नही उस दाने पर उसका ,
दाना गर्भ धरा जिसने बोया है ।
गैरो की ख़ातिर अक्सर हमने।
... विवेक दुबे"निश्चल"@..
Blog post 18/3/18
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