जी ले तू ज़िंदगी अपनी यही बहुत है ।
वक़्त से नही शिकायत यही बहुत है ।
न बाँट जमाने को तन्हाईयाँ तू अपनी ,
पास दुनियाँ के अपने ग़म ही बहुत है ।
....
छुड़ाकर दामन दुनियाँ छूटती नही है ।
प्रीतम प्यार से दुनियाँ ऊबती नही है ।
डूब अपने आप में पीले तू इसको ।
अश्कों से तेरे दुनियाँ भींगती नही है ।
... विवेक दुबे "निश्चल"@...
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